उत्तर= ओशो के अनुसार, अपने को जान लेना ही परम तीर्थ है। सारे दुनिया में जो अपने को नहीं जान पाया वह अज्ञानी है। उसके सारे तीर्थ व्यर्थ है। हर वो मनुष्य जो अपने आप को नहीं जानते वो दलीत होकर ही मरते है भले ही वह भौतिक रूप से पैसे, सम्पत्ती, आदि से सम्पन्न हो। मैं सभी लोगो से एक बात कहना चाहूंगा कि तुम जान लो कि तुम अकेले हो। सपना झूठा है फिर भागना क्या कहोगे । महल श्रम्ह और मैं मतलब अहंकार (अज्ञानी) है। इसलिए जो अपने को पा लेता है वो सबकुछ पा लेता है। जो बाहर पाने की खोज करता है जो अपने को भी खो देता है। शून्य मे परमात्मा मिलता है। अपने को पाने के लिए संसार की जंजीरें तोडना पड़ता है। ध्यान है वर्तमान में होने की कला / निंद्रा उठती अहंकार भाव से और जो करुणा से जो शब्द निकलता है वह आलोचना है तो भी जीवनभर सार्थक है पापी से घृणा करो तो निंदा है और पाप आलेचना है। बाहर की खोज संघर्ष है और भीतर की खोज में कोई संधर्ष नहीं। पाप को घृणा करो पापी को नही यदि कोई मूर्ख समझे तो सभी की निंदा करना शुरू कर दो। आकाश, सुरज, चाँद, वृक्ष आदि आदि । जो भी निंदा करे उससे नाकारात्मक वक्तव्य करना । इससे तुम्हारी प्रतिभा सिद्ध होती है। इसलिए हर आदमी निंदा में सुगम है। नशा और मोह, माया को त्याग दो परमात्मा के मार्ग में जब चलना मे जो अहंकार है वह है निंदा। योगी कठोर हो सकता है करुणा से । परमात्मा शराब है जो एक बार पी लिया वो अपने अहंकार ( मैं) से छूट जाता है। धर्म तो अश्रेय को उपलब्ध होता है। एक वो जो बाहरी धर्म से जुड़े होते हैं जो मंन्दिर, मस्जिद में चुकता, हाथ जोड़ता है। और अन्दर भय के कारण कहता है। मुझे बचाना और कामवासना में लिप्त रहता है जिससे मृत्यु न उभरें। उसके सारी निजि क्षमता काम ऊर्जा के गलत मार्गों पर चले जाने से है। वह नर्क जैसा जीवन जीने को मजबूर हो जाता है। सम्भोग के बाद व्यक्ति ब्रम्हचर्य को उपलब्ध नहीं हो पाता है। अगर श्वास को बिल्कुल शिथिल हो (अत्यन्त) सम्भोग के समय और ध्यान आज्ञा चक्र (दोनों आँखों के बीच) पर हो तो सम्भोग का क्षण लम्बा हो जायेगा। Sex के प्रास ऐसे जाये जैसे मन्दिर में जाते हैं। आनन्दित आदमी Sex के पास नहीं जाता बल्कि दुखी आदमी ही Sexके पास जाता है। इसलिए चिन्ता के समय Sex के पास न जाए | जिस दिन आप निंद में जाग गए तो Unconsious में जाग गए। | जिस दिन आपकी चेतना जाग गयी जबकी आप सोए है। तो समझ जाए आप जाग गए और सपने देख रहें हैं। जो स्वप्न में जाग गया नहीं जाग गया। एक हाथ से ताली नहीं बजती है। नीचे के बिना ऊपर का कोई अस्तित्व नहीं है। दाया है तो बाया है। साहस आता है अंधेरे में - उतरने से | ऊपर छोड़कर नीचे जाने की कोशिश करें। अलग से नियम बनाने की कसम कभी मत खाओ। आँख वाले लोग जब ढंग से जीते है वहीं व्रत है। आधे ही व्रत लेते जाग जाओगे तो सबकुछ अपने आप दूर जाता है। विवेक ने चलें। महावीर ने कहा जो जागा हुआ है उसे मैं साधु कहता है। जो सोया हुआ जीता है वह असाधु है। अप्रमाद है। प्रत्येक कार्य को होश पूर्वक करने की कोशिश करे। उतरे गहरे ताकि उपलब्ध हो सकें ऊंचाई । अदि या परिणाम, दिशा, स्थिति अकाम परिणाम है, कर्म स्थिति है। इसको बदलने की क्रिया अप्रमाद है। स्मरण रहे। जो मनुष्य यदि इन सभी शब्दों पर विचार करें और अपने जीवन को इसके अनुसार ढालने की कोशिश करे तो अवश्य ही परमात्मा के निकट होगा।
The history of human body -- The Human body is the structure of a human being. It is compared of many different type of cells that together create tissues and subsequently organ systems. The history of Soul - The soul in many religion, phylosophy, and mythological tredition, is the incorporeal essence of a living being. Reason, character, feeling, conscious memory, preception, thinking, etc. You will received knowledge read next version.
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