प्रश्न= ब्रम्हाण्ड मे समय का चक्र (काल चक्र ) क्या है ? Art of Living अर्थात मानव जीवन जीने की कला क्या है ?

उत्तर= बापुजी के अनुसार, समय चक्र को महाकाल कहते हैं। समय चक्र बलवान है।समय ही काल है।मनुष्य आत्मा को शास्त्रों के हिसाब से जो मनुष्य को बताया जाता है वह ठीक है लेकिन आत्मा की उन्नति कैसे होगी। उसके लिए पूरे जीवन भर परम परम महाशिव को याद करो उसे अनुभव करों और आत्मा को ज्ञान होना चाहिए कि मुझे जीव से शिव बनना है। लक्ष्य दृढ़ बनाओ | योग से परम प्रकाश (निराकार शिव) को याद करो कर्म योगी बनो प्रत्येक समय लक्ष्य याद करों नींद में भी सोचो कि मैं परमधाम में  हूँ। हर पल याद करो हर कार्य को करते हुए याद करोगे तो निष्काम कर्म होगा | याद करने से आत्मा में  पावर आयेगी तो तुम्हारे विकर्म खत्म हो जायेंगे रोड़ा (आत्मा) परम प्रकाश का बन जायेगा। ध्यान और योग से आध्यात्मिक रास्ते पर चलने की कोशिश को ही जीवन जीने की कला कहते हैं।जो आध्यात्मिक रास्ते पर चलते है उनकी मृत्यु (शरीर की) होने के बाद उसकी आत्मा में शिव को प्राप्त करने की इच्छा होगी तो धीरे-धीरे स्वर्ग में फिर ब्रम्हपूरी, वैकुण्ठ में, विष्णुपूरी, फिर शिवपुरी में पहुँच जायेगी। इससे ऊपर जाना है तो और अधिक पुरुषार्थ करना पड़ेगा तब पहुँचेगा। यदि आत्मा का लक्ष्य पावरफूल है तो शिवपूरी में ही आँख खुलेगी मृत्यु के बाद आत्मा की जीवन मुक्ति हो जायेगी । आत्मा को अन्तर्वास शरीर भी कहते हैं। आत्मा के अन्दर मन के अन्दर बुद्धि के अन्दर संस्कार है। अगले जन्म में क्या बनना है। इसके लिए अभी से तैयारी करों तथा आध्यात्मिक रास्ते को अपना लो। आत्मा जो चाहे वह बन सकती है। लेकिन धरती पर मोह, माया के बन्धन में फँस जाती है।                 


                                      प्रश्न=  Astral Travelling क्या है ?

उत्तर=जब आत्मा का परम शिव को पाने का उच्च लक्ष्य होता है। तो आत्मा आकाश में और

अन्तरिक्ष में यात्रा कर सकती है। इसके लिए आत्मस्वरूप में स्थित होकर रूह को

 शरीर से बाहर निकालकर सूक्ष्म जगत में जाकर घूमकर वापस अपने शरीर में घुस जाता है। इसी को आकाशिय यात्रा कहा जाता है।

प्रश्न=समाधि अवस्था क्या है ?

उत्तर= पुराने समय में ऋषि-मुनि गुफाओं में जाकर एकान्त में निराकार को याद करते थे। तो शरीर  के सारे चक्र खुल जाते थे।  उर्जा मुलाधार चक्र से ऊपर उठकर शाहस्त्राण चक्र तक आकर वर्तुलाकार में शरीर के अन्दर घुमाने लगती और  सभी चक्र पूर्ण रूप से खुल जाते थे। यही अवसथा समाधिस्थ है |मनुष्य आत्मा का समाधिस्थ होने के बाद ही परमात्मा से मिलन होता है। जब आठवाँ चक्र खुल जाता है तो मनुष्य आत्मस्वरूप में आ जाते हैं तभी आठवाँ चक्र से ऊपर शाशासतागार खुल जाते हैं तो दशम द्वार खुल जाते हैं तो आत्मा शाशास्त्रगार अनन्त कोटि में जितने शैल होते हैं उतने ब्रम्हाण्ड मे है तो आत्मा को सारे ब्रह्माण्ड का ज्ञान प्राप्त हो जाता है और आत्मा  ब्रम्हांड मे घुमकर वापस शरीर में आठवे चक्र से नीचे आ जाती है। आत्मा दशम द्वार से बाहर निकलती है। आठवाँ चक्र से नीचे आत्मा आ जाती है तो इसे देवान से परे कहते है। यही समाधि अवस्था भी है ये महापुरुष बहुत पहुँचे हुए या श्रषि,संत मुनि, जिन्हें तीनों कालों और वेद, उपनिषद से परे का ज्ञान होता है। वही समाधि अवस्था में होते है। इसके लिए अनेकों बार मनुष्य जीवन में आना पड़ता है | आत्मा शिव बनकर ही महाशिव को जान सकता है।


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