WHO WAS OSHO? AND WHAT IS HISTORY OF OSHO ?

 Answer = Osho, also known as Bhagwan Shree Rajneesh, was an Indian spiritual leader and teacher who gained popularity in the 1970s and 1980s. He was born on December 11, 1931, in Kuchwada, a small village in the Indian state of Madhya Pradesh.

Osho began teaching philosophy and meditation in the 1960s, and soon developed a large following in India. He attracted Westerners to his teachings as well and started traveling to Europe and the United States in the 1970s, where he gained more followers.

In the 1980s, Osho established a commune called Rajneeshpuram in Oregon, USA. The commune was a controversial experiment in creating a self-sustaining community based on Osho's teachings. However, the community faced many legal and social issues, including conflicts with neighboring communities and allegations of fraud and abuse.

In 1985, Osho was arrested and charged with immigration violations, and he agreed to leave the United States. He returned to India, where he continued to teach until his death on January 19, 1990.

Osho's teachings emphasized the importance of meditation, mindfulness, and living in the present moment. He also encouraged individualism and rejected traditional religions and belief systems. Osho's teachings have continued to influence spiritual seekers around the world, and his books and recordings remain popular among his followers

HOW TO MAKE MONEY ONLINE ?

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प्रश्न= what is invisible science(अदृश्य विज्ञान क्या है) ?

उत्तर=  ऐसा विज्ञान जो इन भौतिक आंखो से दिखाई न दे लेकिन अनुभव किया जा सकता है वह अदृश्य विज्ञान कहलाता है । और जो दिखाई देता है वह स्थूल तत्वों से बना है। invisible Science परम तत्व (परम आकाश, वायु, आदि हैं। अलौकिक तत्व से बने साधन मनुष्य के लिए (invisible Science है |कहा जाता है कि Ancient Alian जब अपने विमान से पृथ्वी पर आते हैं तो उनके विमान सूर्य के प्रकाश में आते ही कुछ समय के लिए स्थूल अग्नि तत्व में परिवर्तित हो जाते हैं जो दिखाई देते हैं। एलियन आधा भौतिक और आधा पराभौतिक सम्पन  तल से बने होते हैं।                     


प्रश्न= क्या मनुष्य जीवन मृत्यु से परे जा सकता है ?           उत्तर= हाँ, यदि मनुष्य को ज्ञान हो जाए तो उसकी आत्मा में वैराग्य आयेगा और  वह मृत्यु से परे जा सकता है। ज्ञान होने के बाद मनुष्य 

समझ जायेगा की यह दुनिया विनाशकारी है। और वह ब्रम्ह की उपासना करेगी।                                                          प्रश्न= कारण जगत, कौशल world or केजुअल plane क्या है ?                                                                 उत्तर=  कारण जगत माने परम तत्व की दुनिया जो सबसे पहले बनी । तो परमतत्व शिव ने ब्रम्हा द्वारा कारण जगत की रचना कराई तो सबसे पहले परम तत्व की आत्मा बनाई जिन्हें फरिस्ता (फर्श वालों से कोई मतलब नहो) कहते हैं। फरिस्ता की आत्मा दे



वताओं से भी हाईक्वालिटी की होती है। फरिस्ता का शरीर परम वायु, परम आकाश, परम अग्नि का होता है। इनमें भोग, विलास की इच्छा नहीं होती | कारण जगत को ही कौसल जगत कहते हैं। कारण जगत के ऊपर परम धाम है। | कारण जगत के कई लेयर (स्तर) है। कम कारण

जगत (परम तत्व की 80% मात्रा ) जहाँ वैकुण्ठ लोक है (विष्णू पूरी), परम धाम में परम शिव रहते हैं। परम धाम से ऊपर महाकारण जगत है। कारण जगत अमरलोक है। स्थूल सूर्य की रोशनी जहाँ तक जाती है वहाँ तक सूक्ष्म दुनिया है। सूक्ष्म दुनिया में भी कई लेअर (स्तर) है। कारण जगत में चमकीले रंग की नदीयाँ, पहाड, वृक्ष आदि जल है। संकल्प करने मात्र से इच्छा पूरी हो जाती थी। लेकिन आज कई शिव, विष्णु, ब्रम्हा बदल चुके हैं। नीचे आ गए। कारण जगत माने विष्णुपूरी से कई अरब योजऩ दुर  है | 


प्रश्न= आत्मा गरीब के घर जन्म लेगी या अमीर के घर , यह निर्णय कौन करता है ?                                                 उत्तर=  पुराणों  के अनुसार= पुराने समय में चितगुप्त आत्मा के पाप, पुण्य कर्म के हिसाब से जन्म लेने को कहते थे। बापू जी के अनुसार, परन्तु आज के समय मे सुपरकम्प्यूटर लगे हैं। सुक्ष्म जगत में अच्छे आत्मायें है जो मृत आत्मा को पाप-पुण्य कर्म के हिसाब से उसे गरीब या अमीर के घर जन्म लेने को कहती है गरीब के घर जन्म लेकर अपना पाप धो लो और अमीर के घर जन्म लेकर अच्छे कार्य करो | परन्तु जन्म लेते ही मनुष्य भुल जाता है। इसलिए मनुष्य को ध्यान करते हुए अच्छे कर्म करना चाहिए । आध्यात्मिक गुरुओं के अनुसार, मनुष्य का जन्म उसके संस्कारो, कर्म बंधनों,और वृत्तियों पर निर्भर करता है। कोई बाहरी तत्व पर नहीं।



प्रश्न= नाकारात्मक उर्जाओ का मानव जीवन पर क्या प्रभाव पड़ता है ?(How to Negative energy effect on Human Life) ?.

उत्तर= गीता में भगवान कृष्ण ने कहाँ है। जो जिसको याद करता है वह उसे पाता है|जो मनुष्य वासनाओं से पूर्ण वस्तुओं और विषय के बारे में सोचता है या उसमें लिप्त होता है तो Negative energy उस मनुष्य की ओर आकर्षित होने लगती है।  नाकारात्मक विषय, वासना सोचने से वायु के माध्यम से भी Negativity मनुष्य मे और वायुमण्डल के रास्ते Negative ओड़ा( आत्मा) में आती है।फिर कारण शरीर में फिर सूक्ष्म शरीर में आ जाते हैं । Negativ  याद करने से Black औणा) बनता है और , Positive (देवता) कर्म करने से  ओडा (नीला) हो जाता है,  गुस्से में Red ओडा बनता है। सोचने, याद करने, सुनने से, देखने से ओडा बनता है। सतयुग में सोचने से सबकुछ मिल जाता था मेनहत नहीं करना पड़ता । इसलिए अच्छा सोचो, बोलो, याद करो, ग्रहण करो आत्मा के अन्दर जो जन्म जन्म का पाप-पुण्य (कर्म बन्धन) रिकार्डिंग  होता है उसी के अनुसार औणा भी बन जाती है।                 प्रश्न= बुरे कर्म को कैसे समाप्त करें (How to Dissolved Bad Karm)?<script type="text/javascript">

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उत्तर= बुरे कर्म के विनाश  के लिए सही ज्ञान, विधि है परम महाशिव को याद करने  से Power आत्मा के अन्दर आने से योग अग्नि से पाप-पुण्य विनाश हो जायेंगे तो करमाधित अवस्था (आत्मा हल्की हो जाती है विसंकल्प हो गयी तो आकाश तत्व बढ़ जाता है ) इच्छा मृत्यु का वरदान मिल जाता  है तब आत्मा परमात्मा के पास चली जाती है। जिसका जीवन मुक्ति, मोक्ष का लक्ष है । परमधाम में जाने का लक्ष्य है ।   प्रश्न=  How to Get free from fear?डर से छूटकारा कैसे पाएं,


उत्तर= मनुष्य एक सामाजिक प्राणि है। समाज का डर है, मृत्यु, अपमान, भोतिकता, आदि बहुत से डर है  इससे मनुष्य आत्मा कमजोर हो जाती है। आत्मा को निर्भय बनने के लिए इसे power चाहिए। आत्मा में पावर परमतत्व से आयेगा , यह कोशिश आत्मा को स्वयं करनी होगी ध्यान और योग, ज्ञान के माध्यम से। ध्यान और योग और भौतिक शिक्षा के माध्यम से ही मनुष्य को ज्ञान प्राप्त होगा और ज्ञान प्राप्त होने के बाद ही मनुष्य प्रकृति,देह, देह के सम्बन्धों को समझ पायेगा। और तभी निर्भय हो पायेगा।मनुष्य परमात्मा को अपने साथ समझे और Almighty Authority का ध्यान करें । परमात्मा के परमशक्ति आने से ही आत्मा  निर्भय बन पायेगी।और निर्भयता के लिए मनुष्य को  भौतिक मन्दिर, मस्जिद में जाने की जरूरत नहीं।



प्रश्न= How to Reach Behad का परम धाम ?            उत्तर= बापू जी को अनुसार,  101 कला मे से 90 कला,  Universe आदि का जन हिस्सा है | पहले समेटने की शक्ति चाहिए इससे पहले आत्मस्वस्वरूप में स्थित होने की शक्ति चाहिए। स्वाद माने अनादि (निराकारी) स्वरुप |आत्म स्वस्वरूप - आदि, अनादि दो रूप है। व्यक्त से अव्यक्त बनना। गलत संकल्पों के कारण आत्मा की शक्ति नष्ट होती है और आत्मा कमजोर बनेगा । 1000 अरब से Universe की पावर उस आत्मा में आयेगी और परमात्मा को  याद करने से  आत्मा निराकार बन जायेगी ।





प्रश्न= UNIVERSE क्या है ?

उत्तर=  युनिवर्स अनन्त है इसको परिभाषित नहीं किया जा सकता है। इसके अन्दर सभी और अनन्त भौतिक और आध्यात्मिक, गेलेक्सी,तारे, पृथ्वीया , उर्जा है।  बापुजी के अनुसार,

That  with universe on 34-45 million & million stat 217 Vrglary. आकाशगंगा है।  Milley vway, आकाशगंगा, एक आकाशगंगा है।


एक प्रकाश को कोई नहीं देख सकता सिवाय परमत्व के। जैसे मनुष्य तीन तत्वों वाले आत्मा को नहीं देख सकता केवल अनुभव कर सकता है। आत्मा निराकार होती है। तो पूर्ण ज्ञान होता है। आकारी रूप में धरती पर आते ही भुल जाता है। प्रतिपल अनन्त ब्रम्हाण्ड बनते बिगड़ते है तो महाशिव का पावर कम होने लगता है तो महाशिव महाकाल बनकर सारे Galaxy, युनिवर्स को रोम रोम में समा लेता है।  प्रलय के लिए हर Galaxy का मालिक महाशिव है। महाकाल बनकर  मतलब ब्लैक होल बनकर अपनी ग्रैविटी से अनन्त कोटि ब्रम्हाण्ड को  अपने में समा लेता है। रोम-रोम का मतलब एक-एक शैल में | एक शिव  माने एक सोलर सिस्टम।अनन्त - अनन्त शिव बने परम शिव के परमत्व से।


फिर संकल्प किया तो निराकारी पुरस से आकारी शिव बना । ब्रम्हा जी ने एक संकल्प किया तो अनेको अनन्त फरीस्ते बने।

जब फरिस्ते गिरने लगे तो देवता बने और फिर धरती बनाई। फिर अन्धेरा होने लगा तो परमात्मा ने सूर्य बनाया। मनुष्य और  नीचे गिरा तो फिर नर्क बनाया गया।

प्रश्न= ब्रम्ह क्या है ? उससे कैसे जुड़े ?

उत्तर=  ब्रम्ह का मतलब  परम प्रकाश | निर्गुण ब्रम्ह (निराकार है और सगुण ब्रम्ह माने ज्योतिर्लिंग (शिवलिंग) है, साकार अवतार,  शिव जो ज्योतिर्लिंग के रूप में है । इसलिए शिवलिंग पृथ्वी पर बनाया गया ।


बापुजी दशरथ भाई के अनुसार,

अविनाशी ब्रम्ह को The Almighty Authority कहते हैं। जो कभी भी आकार रूप में नहीं आते सदय निराकार रूप में रहते हैं। कई युगान्तर तप करने के बाद ही अविनाशी ब्रम्ह की प्राप्ति होती हैं। एक ब्रम्हाण्ड का मालिक, शिव है। तो जितने ब्रम्हाण्ड है उतने शिव है। महाशिव को महाब्रम्ह  कहते हैं। बेहिसाब समय के बाद यही आत्मायें सालों से राजो गुण से तमो में आ गयी तो आत्मा की Power कम हो जाने से शंकर (महादेव) बन गये। ज्ञान होगा तभी ब्रम्ह की प्राप्ति हो सकती है। जो निराकार (परम Light) के रूप में है परब्रम्ह कहेंगे, शिव,  परममहाशिव FO: Bexand Energy - matter Timey space and meditation is what zdast Meditation का मतलब आत्मा से परमात्मा का कनेक्शन | हो सके इसलिए 29 घंण्टे में से 8 घण्टे परमात्मा को याद करें। सबसे पहले निसंकल्प बने । मतलब दिमाग में जो विचार चल रहे है उसे निकाल दो | और अज्ञानी, Negative वस्तुओं, व्यक्तियों से दूर रहने की कोशिश करो । क्योंकि इनके साथ रहने या याद करने से Negative संकल्प आप को आयेंगे । -इस ब्रम्हाण्ड के शिव से कनेक्ट होने के लिए ॐ की ध्वनि करों । सबसे पहले एक कमरे में बैठे और खिड़की, दरवाजे बन्द कर ले जिससे बाहर की आवाज अन्दर न आयें। कानों में कुछ लगा ले। दीवार के सहारे भी बैठ सकते है। अपनी आँखे बन्द करे और शरीर को ढीला कर लें। यदि विचार कन्ट्रोल नहीं तो उल्टी गिनती करे 10,9,8,7,6,5,4,3,2,1 और शान्त होने की कोशिश करे। परमपिता को निराकार रूप में याद करें और कुछ देर ॐ की ध्वनि हल्का निकाले फिर ध्यान को परम प्रकाश पर केन्द्रीत कर लें। निसंकल्प होकर परम परम शान्ति का अनुभव करें और सोंचे में परम-परम आत्मा से हूँ। आत्मस्वरुप में स्थित हो जायें। सोंचे मैं परम प्रकाश हूँ अब धीरे

धीरे ऊपर जाये Galaxy h उपर universe, multiverse से ऊपर जाये  और परम- प्रकाश को देखे उसमें मय हो जायें। और प्रेम का भाव होना चाहिए। अपने अन्दर परम-परम- प्रकाश की अनुभुती करें। इस स्थिति में आपको परम - परम प्रकाश ही दिखना चाहिए | आपके सुक्ष्म, कारण शरीर में परम प्रकाश तत्व, परम अग्नि तत्व भर चुका है और यह परम परम- प्रकाश धरती, Universe सभी और प्रकाशित हो रहा है और transfer हो रहा है। और आपके सारे पाप कर्म का विनाश हो रहा है। 


परमपिता  हम आपसे ऐसे ही जुड़े रहे।  ज्ञान और प्रकाश का अनुभव करते हुए अब धीरे-धीरे बेहद की यात्रा को समाप्त करते हुए धरती के शरीर में वापस आ जाएं और परमशान्ति। यही योग बार बार करें।

प्रश्न= ब्रम्हाण्ड मे समय का चक्र (काल चक्र ) क्या है ? Art of Living अर्थात मानव जीवन जीने की कला क्या है ?

उत्तर= बापुजी के अनुसार, समय चक्र को महाकाल कहते हैं। समय चक्र बलवान है।समय ही काल है।मनुष्य आत्मा को शास्त्रों के हिसाब से जो मनुष्य को बताया जाता है वह ठीक है लेकिन आत्मा की उन्नति कैसे होगी। उसके लिए पूरे जीवन भर परम परम महाशिव को याद करो उसे अनुभव करों और आत्मा को ज्ञान होना चाहिए कि मुझे जीव से शिव बनना है। लक्ष्य दृढ़ बनाओ | योग से परम प्रकाश (निराकार शिव) को याद करो कर्म योगी बनो प्रत्येक समय लक्ष्य याद करों नींद में भी सोचो कि मैं परमधाम में  हूँ। हर पल याद करो हर कार्य को करते हुए याद करोगे तो निष्काम कर्म होगा | याद करने से आत्मा में  पावर आयेगी तो तुम्हारे विकर्म खत्म हो जायेंगे रोड़ा (आत्मा) परम प्रकाश का बन जायेगा। ध्यान और योग से आध्यात्मिक रास्ते पर चलने की कोशिश को ही जीवन जीने की कला कहते हैं।जो आध्यात्मिक रास्ते पर चलते है उनकी मृत्यु (शरीर की) होने के बाद उसकी आत्मा में शिव को प्राप्त करने की इच्छा होगी तो धीरे-धीरे स्वर्ग में फिर ब्रम्हपूरी, वैकुण्ठ में, विष्णुपूरी, फिर शिवपुरी में पहुँच जायेगी। इससे ऊपर जाना है तो और अधिक पुरुषार्थ करना पड़ेगा तब पहुँचेगा। यदि आत्मा का लक्ष्य पावरफूल है तो शिवपूरी में ही आँख खुलेगी मृत्यु के बाद आत्मा की जीवन मुक्ति हो जायेगी । आत्मा को अन्तर्वास शरीर भी कहते हैं। आत्मा के अन्दर मन के अन्दर बुद्धि के अन्दर संस्कार है। अगले जन्म में क्या बनना है। इसके लिए अभी से तैयारी करों तथा आध्यात्मिक रास्ते को अपना लो। आत्मा जो चाहे वह बन सकती है। लेकिन धरती पर मोह, माया के बन्धन में फँस जाती है।                 


                                      प्रश्न=  Astral Travelling क्या है ?

उत्तर=जब आत्मा का परम शिव को पाने का उच्च लक्ष्य होता है। तो आत्मा आकाश में और

अन्तरिक्ष में यात्रा कर सकती है। इसके लिए आत्मस्वरूप में स्थित होकर रूह को

 शरीर से बाहर निकालकर सूक्ष्म जगत में जाकर घूमकर वापस अपने शरीर में घुस जाता है। इसी को आकाशिय यात्रा कहा जाता है।

प्रश्न=समाधि अवस्था क्या है ?

उत्तर= पुराने समय में ऋषि-मुनि गुफाओं में जाकर एकान्त में निराकार को याद करते थे। तो शरीर  के सारे चक्र खुल जाते थे।  उर्जा मुलाधार चक्र से ऊपर उठकर शाहस्त्राण चक्र तक आकर वर्तुलाकार में शरीर के अन्दर घुमाने लगती और  सभी चक्र पूर्ण रूप से खुल जाते थे। यही अवसथा समाधिस्थ है |मनुष्य आत्मा का समाधिस्थ होने के बाद ही परमात्मा से मिलन होता है। जब आठवाँ चक्र खुल जाता है तो मनुष्य आत्मस्वरूप में आ जाते हैं तभी आठवाँ चक्र से ऊपर शाशासतागार खुल जाते हैं तो दशम द्वार खुल जाते हैं तो आत्मा शाशास्त्रगार अनन्त कोटि में जितने शैल होते हैं उतने ब्रम्हाण्ड मे है तो आत्मा को सारे ब्रह्माण्ड का ज्ञान प्राप्त हो जाता है और आत्मा  ब्रम्हांड मे घुमकर वापस शरीर में आठवे चक्र से नीचे आ जाती है। आत्मा दशम द्वार से बाहर निकलती है। आठवाँ चक्र से नीचे आत्मा आ जाती है तो इसे देवान से परे कहते है। यही समाधि अवस्था भी है ये महापुरुष बहुत पहुँचे हुए या श्रषि,संत मुनि, जिन्हें तीनों कालों और वेद, उपनिषद से परे का ज्ञान होता है। वही समाधि अवस्था में होते है। इसके लिए अनेकों बार मनुष्य जीवन में आना पड़ता है | आत्मा शिव बनकर ही महाशिव को जान सकता है।


WHO WAS OSHO? AND WHAT IS HISTORY OF OSHO ?

 Answer =  Osho, also known as Bhagwan Shree Rajneesh, was an Indian spiritual leader and teacher who gained popularity in the 1970s and 198...