उत्तर=किसी दुसरे के द्वारा अपराध कि माफ़ी देने से अपराधी के कर्मो का विनाश नहीं होता है। माफ़ी तो मैं के समाप्त होने के बाद मिलता है। शास्त्रों के अनुसार,
माफ़ी देने से विकर्म विनाश नहीं होते है। अपराधी को और माफी कौन दे सकता है। छोटी-छोटी गलतियों पर तो माँफी मिल जाती है। लेकिन बड़ी गलती
जैसे प्रियजन का सुन कर दे तो पावरफुल आत्मायें जैसे ऋषि, मुनि ही माफ कर सकते हैं। मांफी देने वाला बड़ा होता है माफी मांगने वाले से। | ज्ञानी आत्मा को ज्ञान होता है इसलिए माफी दे देती है जबकि साधारण आत्मा प्रतिशोध लेती है। अहंकार रहित मनुष्य के माफ़ी करने से कर्मबन्धन धीरे-धीरे खत्म हो जाता है। उस कर्म का प्रतिशोध लेने वाली आत्मायें तमोगुडी बन जाती है।
आत्मा के अन्दर मन और मन के अन्दर बुद्धि और बुद्धि के अन्दर संस्कार होते है। तमोगुड़ी आत्मा बन जाती इसका दुद्वारा मन है तो बदला लेने के लिए भुत( बीते)बनकर बदला लेती है। जन्म नहीं मिलता है। पुरुषार्थ करने के बाद ही जन्म मिलता है। प्रश्न= अन्त मति सो गति, शास्त्रों में लिखा है क्या अर्थ है ?
उत्तर= इसका अर्थ है कि मरने के समय या बाद आत्मा में जो सोच, Sense होता है उसी के अनुसार आत्मा की गति होती है। Powerful आत्मायें अपना DNA लेकर आती है। कमजोर आत्माओं में पूर्वजों के संस्कार आ जाता है। पिता के जैसे लक्षण, गुण है उसके बच्चे में आजाना। एक शैल से ही शरीर (बॉडी) का निर्माण होता है। प्रश्न= योग कितने प्रकार का है ? उत्तम योग क्या है कौन सा हैं ?
उत्तर=
योग कई प्रकार के है। गीता में 18 प्रकार के योग बताये गये हैं। राज योग,कर्मयोग, प्रेम योग, ज्ञान योग, धर्म योग, ज्ञान योग आदि। पहले राजयोग है। राज योग ( सारे राज (ज्ञान) को जानना) जैसे परमात्मा, आत्मा, ब्रम्हाण्ड, कर्म आदि को जानकर कर्म करना) कर्मयोग परमात्मा की याद में रहते हुए फल की इच्छा किए बिना जो कर्म करता है। वह निष्काम कर्म है। विकर्म का विनाश हो जाता है। गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा तू निष्काम कर्म कर, मैं तेरे सारे विकर्म
विनाश कर तुझे उच्च से उच्च परमधाम में ले जाऊँगा | सर्वधर्म परितज्ये ममितम शरणम, गीता में भगवान कृष्ण ने कहा है। प्रश्न = मनुष्य क्यों बनता है? आत्मा मनुष्य शरीर से क्या उम्मीद रखती है ?
उत्तर= जब आत्मा का जन्म होता है तो सतों और गौर हो जाती है। तो देवता रजो (तीन तत्व) और जब और पावर खत्म हो जाती है तो तमोगुड़ी (मनुष्य) बन जाती है। और अनेको जन्मों तक जन्म-मरण के चक्कर में आती है तो पावर और कम हो जाने के जानवर बन जाती है। मनुष्य बनने का कारण है आत्म बनना चाहते है कि मनुक्य जीवन प्राप्त करके ही ज्ञान पाकर जीवन में enery कम हो जाता। मनुष्य जीवन बहुत ही अल्युबल है। देवता भी मनुष्य मुक्ति प्राप्त कर सकता है। देवता को माकों के लिए अधिक प्रोगार्थ करना
प
No comments:
Post a Comment